सोमवार, 9 नवंबर 2009

kshamayachna

पिछले कुछ दिनों से ख़राब स्वास्थ्य सहित विभिन्न कारणों से ब्लॉग पर अनुपस्थित रहा .खेद के साथ क्षमायाचना चाहता हूँ. 
जिंदगी कितनी अनिश्चित है ....? हर पल, पल - पल अपनी मर्ज़ी से  ही हम को हांकती है . एक शेर याद आ रहा है :- 
" अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं .
रुख हवाओं का जिधर का उधर के हम हैं ."
हम जो कुछ भी सोचते हैं वैसा कुछ भी नहीं होता है और जो होता है वही हमें स्वीकार  करना पड़ता है उसी के अनुसार हमको चलना पड़ता है .
कुछ लोग मुख्यता आदर्शवादी टाईप  के  कह सकते हैं कि यह एक निराशावादी सोच है ;हालत हमारे वश में होते हैं हम चाहें तो उन्हें अपने अनुसार मोड़ सकते हैं .........लेकिन क्या हर जगह हर समय हर स्थिति को अपने वश में किया जा सकता है.........

2 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद ...! प्रोत्साहन के लिए ...शीघ्र ही आपके ब्लॉग पर भ्रमण करूँगा .....दरअसल मैं कंप्यूटर क्षेत्र में पारंगत नहीं हूँ ...अभी सीखने की प्रक्रिया में ही हूँ ..इसलिए ब्लॉग के नियम कायदे मैनर्स इत्यादि से पूर्णत: वाकिफ नहीं हूँ ......अत: उम्मीद है कभी कुछ क्रिया प्रतिक्रिया उचित न हो तो अन्यथा नहीं लेंगे .....पुन: आभार ....!

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    1. धन्यवाद ...! प्रोत्साहन के लिए ...शीघ्र ही आपके ब्लॉग पर भ्रमण करूँगा .....दरअसल मैं कंप्यूटर क्षेत्र में पारंगत नहीं हूँ ...अभी सीखने की प्रक्रिया में ही हूँ ..इसलिए ब्लॉग के नियम कायदे मैनर्स इत्यादि से पूर्णत: वाकिफ नहीं हूँ ......अत: उम्मीद है कभी कुछ क्रिया प्रतिक्रिया उचित न हो तो अन्यथा नहीं लेंगे .....पुन: आभार ....

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