शनिवार, 9 अगस्त 2014
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
gazal
तुम भी तो कभी आओ दो चार कदम चलके
मालूम हो के तेल के दाम बढ़ गए ।
खड़े थे धूप में जिन्हें हम साथ लेने को
वो लिफ्ट लेकर गैर की गाड़ी में बढ़ गए ।
जलते हैं अगर लोग तो कोई हर्ज नहीं है
यहाँ तरक्की देख मेरी अपने ही जल गए ।
कुत्तों की टेढ़ी दम कभी सीधी नहीं होती
नादाँ थे मसीहा वो जो सूली पे चढ़ गए ।।
शनिवार, 14 नवंबर 2009
geet
तुम अगर आओ मेरी बाँहों में मुद्दत से बिगड़ी तकदीर संवर जाये .
प्यार का भर दो रंग दामन में हसरत कि उजड़ी तस्वीर संवर जाये.
हाय वीरान है जिंदगी का चमन दिल में उल्फत का गुल खिला ही नहीं
लडखडाते हैं थके हुए ये कदम सहारा अब तलक मिला ही नहीं
मैं तरसता रहूँ हमराही को जिंदगी यूँ ही न गुज़र जाये !
बेकरार है दिल किसी कि चाहत को हमसफ़र ढूंढ़ रही बेताब नज़र
तुम ही हो मेरी मोहब्बत के खुदा हो न जाये कहीं दुआ बेअसर
सहेज के रखी है जो मुद्दत से दिल कि वो आरजू न मर जाये !
रंजो गम भूले हम ज़माने के सांसों में जब तेरा पयाम आये
जहाँ भी चर्चे चलें वफाओं के ज़ुबां पे तेरा ही नाम आये
हर तरफ जलवे तुम्हारे रोशन हों तुमको देखूं जहाँ नजाए जाये !
प्यार का भर दो रंग दामन में हसरत कि उजड़ी तस्वीर संवर जाये.
हाय वीरान है जिंदगी का चमन दिल में उल्फत का गुल खिला ही नहीं
लडखडाते हैं थके हुए ये कदम सहारा अब तलक मिला ही नहीं
मैं तरसता रहूँ हमराही को जिंदगी यूँ ही न गुज़र जाये !
बेकरार है दिल किसी कि चाहत को हमसफ़र ढूंढ़ रही बेताब नज़र
तुम ही हो मेरी मोहब्बत के खुदा हो न जाये कहीं दुआ बेअसर
सहेज के रखी है जो मुद्दत से दिल कि वो आरजू न मर जाये !
रंजो गम भूले हम ज़माने के सांसों में जब तेरा पयाम आये
जहाँ भी चर्चे चलें वफाओं के ज़ुबां पे तेरा ही नाम आये
हर तरफ जलवे तुम्हारे रोशन हों तुमको देखूं जहाँ नजाए जाये !
सोमवार, 9 नवंबर 2009
kshamayachna
पिछले कुछ दिनों से ख़राब स्वास्थ्य सहित विभिन्न कारणों से ब्लॉग पर अनुपस्थित रहा .खेद के साथ क्षमायाचना चाहता हूँ.
जिंदगी कितनी अनिश्चित है ....? हर पल, पल - पल अपनी मर्ज़ी से ही हम को हांकती है . एक शेर याद आ रहा है :-
" अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं .
रुख हवाओं का जिधर का उधर के हम हैं ."
हम जो कुछ भी सोचते हैं वैसा कुछ भी नहीं होता है और जो होता है वही हमें स्वीकार करना पड़ता है उसी के अनुसार हमको चलना पड़ता है .
कुछ लोग मुख्यता आदर्शवादी टाईप के कह सकते हैं कि यह एक निराशावादी सोच है ;हालत हमारे वश में होते हैं हम चाहें तो उन्हें अपने अनुसार मोड़ सकते हैं .........लेकिन क्या हर जगह हर समय हर स्थिति को अपने वश में किया जा सकता है.........
जिंदगी कितनी अनिश्चित है ....? हर पल, पल - पल अपनी मर्ज़ी से ही हम को हांकती है . एक शेर याद आ रहा है :-
" अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं .
रुख हवाओं का जिधर का उधर के हम हैं ."
हम जो कुछ भी सोचते हैं वैसा कुछ भी नहीं होता है और जो होता है वही हमें स्वीकार करना पड़ता है उसी के अनुसार हमको चलना पड़ता है .
कुछ लोग मुख्यता आदर्शवादी टाईप के कह सकते हैं कि यह एक निराशावादी सोच है ;हालत हमारे वश में होते हैं हम चाहें तो उन्हें अपने अनुसार मोड़ सकते हैं .........लेकिन क्या हर जगह हर समय हर स्थिति को अपने वश में किया जा सकता है.........
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
inklaab
दिल में जोश बाजुओं में जोर आना चाहिए !
एक इन्कलाब अभी और आना चाहिए !
टिमटिमाते इन दीयों से अन्धकार हरता नहीं
अब दहकते सूर्य की इक भोर आना चाहिए !
चीख भले ही फट जाएँ तेरे गले की दीवारें
अब हमारी जानिब उनका गौर आना चाहिए !
सीख लेंगे हम सियासत आपकी लेकिन हमारे
आपको भी कुछ तरीके तौर आना चाहिए !
dastan
सदियों पीछे अपना जहाँ छोड़ आये हम !
दूर गाँव में अपना मकाँ छोड़ आये हम !
चाँद को तो छू लिया दौड़ कर लेकिन
आदमी को जाने कहाँ छोड़ आये हम !
जब भी किताबे जिन्दगी देखेगा वो अपनी
रो पड़ेगा ऐसे निशाँ छोड़ आये हम !
खुद को बना लिया है तेरी बज्म के काबिल
बोलती थी सच वो ज़ुबां छोड़ आये हम !
तेरी गली के पत्थरों को चुनने के वास्ते
तारों से भरा आस्मां छोड़ आये हम !
कहने को जब रहा नहीं कुछ भी ऐ अख्तर
यूँ ही ज़रा सी दासतां छोड़ आये हम !
रविवार, 2 अगस्त 2009
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